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दे॒वीर्द्वारो॑ वयो॒धस॒ꣳ शुचि॒मिन्द्र॑मवर्धयन्। उ॒ष्णिहा॒ छन्द॑सेन्द्रि॒यं प्रा॒णमिन्द्रे॒ वयो॒ दध॑द् वसु॒वने॑ वसु॒धेय॑स्य व्यन्तु॒ यज॑ ॥३६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दे॒वीः। द्वारः॑। व॒यो॒धस॒मिति॑ वयः॒ऽधस॑म्। शुचि॑म्। इन्द्र॑म्। अ॒व॒र्ध॒य॒न्। उ॒ष्णिहा॑। छन्द॑सा। इ॒न्द्रि॒यम्। प्रा॒णम्। इन्द्रे॑। वयः॑। दध॑त्। व॒सु॒वन॒ इति॑ वसु॒ऽवने॑। व॒सु॒धेय॒स्येति॑ वसु॒ऽधेय॑स्य। व्य॒न्तु॒। यज॑ ॥३६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:28» मन्त्र:36


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यों को कैसे घर बनाने चाहिए, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! जैसे (देवीः) प्रकाशमान हुए (द्वारः) जाने-आने के लिए द्वार (वयोधसम्) जीवन के आधार (शुचिम्) पवित्र (इन्द्रम्) शुद्ध वायु (इन्द्रियम्) जीव से सेवे हुए (प्राणम्) प्राण को (इन्द्रे) जीव के निमित्त (वसुधेयस्य) धन के आधार कोष के (वसुवने) धन को माँगनेवाले के लिए (अवर्धयन्) बढ़ाते हैं और (व्यन्तु) शोभायमान होवें, वैसे (उष्णिहा, छन्दसा) उष्णिक् छन्द से इन पूर्वोक्त पदार्थों और (वयः) कामना के योग्य प्रिय पदार्थों को (दधत्) धारण करते हुए (यज) हवन कीजिए ॥३६ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो घर सन्मुख द्वारवाले जिन में सब ओर से वायु आवे ऐसे हैं, उनमें निवास करने से अवस्था, पवित्रता, बल और नीरोगता बढ़ती है। इसलिए बहुत द्वारोंवाले बड़े-बड़े घर बनाने चाहियें ॥३६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यैः कीदृशानि गृहाणि निर्मातव्यानीत्याह ॥

अन्वय:

(देवीः) देदीप्यमानानि (द्वारः) गमनागमनार्थानि द्वाराणि (वयोधसम्) जीवनाधारकम् (शुचिम्) पवित्रम् (इन्द्रम्) शुद्धं वायुम् (अवर्धयन्) वर्धयन्ति (उष्णिहा) (छन्दसा) (इन्द्रियम्) इन्द्रेण जीवेन जुष्टम् (प्राणम्) (इन्द्रे) जीवे (वयः) कमनीयं प्रियम् (दधत्) धरन्त्सन् (वसुवने) द्रव्ययाचिने (वसुधेयस्य) धनाऽऽधारस्य कोषस्य (व्यन्तु) (यज) ॥३६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! यथा देवीर्द्वारो वयोधसं शुचिमिन्द्रमिन्द्रियं प्राणमिन्द्रे वसुधेयस्य वसुवनेऽवर्धयन् व्यन्तु तथोष्णिहा छन्दसैतान् वयश्च दधत् सन् यज ॥३६ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यानि गृहाणि सन्मुखद्वाराणि सर्वतो वायुसञ्चारीणि सन्ति, तत्र निवासेन जीवनं पवित्रता बलमारोग्यं च वर्धते, तस्माद् बहुद्वाराणि बृहन्ति गृहाणि निर्मातव्यानि ॥३६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकर आहे. ज्या मोठ्या दरवाजातून सगळीकडून हवा वाहते अशा घरात निवास करण्याने दीर्घायू, पवित्रता, बल व निरोगीपणा वाढतो त्यामुळे पुष्कळ दरवाजे असलेली मोठमोठी घरे बनवावीत.